डार्क हॉर्स
"दिल्ली घुस गया। स्टेशन पर लग रहा है। तेरह नं. पर लग रहा है।" अचानक पैसेंजर की हलचल और बातों से संतोष की आँख खुली। साथ के पैसेंजर सीट के नीचे से अपने अपने सामान खींच रहे थे। संतोष ने आँख मलते हुए पूछा, "दिल्ली आ गया क्या?"
"हाँ, उतरिए आ गया महराज " एक पैसेंजर ने चलते-चलते कहा। रात भर मोबाइल पर गाना सुनते-सुनते कब नींद आई और कब दिल्ली, संतोष को पता ही नहीं चला। संतोष तुरंत मिडिल बर्थ से नीचे कूदा, अपने जूते खोजने लगा। संतोष का तो एकदम दिल धक कर गया। "ये क्या। दिल्ली पहुंचते हो झटका। नया पच्चीस सौ का वुडलैंड गायब!" फिर उसने गर्दन नीचे कर सीट के कोने में देखा तो पाया कि उसके दोनों जूते वहीं दुबके पड़े थे। उसने हाथ से खींचकर जूते निकाले। एक मोजा गीला था। शायद रात को किसी ने खाते वक्त पानी गिरा दिया था। सतोष ने बिना सोचे बैग की जिप खोल मोजे उसमें डाल दिए और केवल जूते पहन जल्दी जल्दी बोगी से बाहर निकला। अपने पेट की पिछली जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाला और उसमें लिखवाए गए निर्देश को पढ़कर एक नजर अपने दाएँ-बाएँ डाली बाईं ओर उसे अजमेरी गेट की तरफ जाने के लिए तीर को निशान दिखा संतोष उसी दिशा में चलते हुए स्टेशन से बाहर आ गया। "मेट्रो स्टेशन किधर पड़ेगा?" संतोष ने एक सज्जन से पूछा।
"वो सामने ही तो है, लेफ्ट में भई। " सज्जन ने चलते-चलते बताया। संतोष ने धीरे से थैंक्स कहा हालांकि इतनी मिमियाई आवाज वाली थैंक्स उस सज्जन तक पहुँचने से पहले वह जा चुका था। मेट्रो की सीढ़ियों से नीचे उतरते ही उसने सबसे पहले टिकट काउंटर की तरफ नजर दौड़ाई। सारे काउंटर पर मधुमक्खी के छत्ते जैसी भीड़ थी। बीच में लाइन तोड़कर घुसने का मतलब था कोई भी भनभना के काट सकता था। तभी उसकी नजर लाइन में काउंटर से पाँचवें नंबर पर खड़े हाथ में एक भारी-सा झोला लिए लगभग साठ-पैस्ट बरस के बुजुर्ग पर पड़ी। उसने इधर-उधर देखा और तुरंत उस बुजुर्ग के करीब जाकर बोला, "चाचा य विश्वविद्यालय का टिकट यहीं मिलेगा?" "सारी दिल्ली का यहीं मिलेगा बेटे, तुझे जाना कहाँ है?" बुजुर्ग ने उसकी आधी बात
सुने बिना पूछा। जी, हमको विश्वविद्यालय जाना था।" संतोष ने थोड़ा स्पष्ट स्वर में कहा। "टोकन मिलता है, टोकन बोलियो टिकट नहीं।" बुजुर्ग ने लगभग नसीहत के
अंदाज में कहा। "चाचा, लाइए मैं आपका झोला पकड़ लूँ बहुत भारी होगा।" संतोष ने एकदम होशियारी भरी विनम्रता से कहा।
"बेटे, झोला छोड़ पीछे जा के लाइन पकड़ ले। लाइन लंबी होती जाएगी। तेरे का